भरोसो
यह प्रसंग श्री वल्लभ कुल के प्रतापी बालक का है,
पर इस में हम "वैष्णव" को भी कैसी अनन्यता रखनी चाहिए ये बात बताई गयी है ।

एक समय एक बालक को किसी वैष्णव ने आके बिनती करी के जे राज आप कृपा करके मेरी बेटी के ब्याह में पधारो
हमारा ऐसा मनोरथ है की
आप पधार के हस्त मिलाप कराओ।
तब आपने पधारने की हा कही .....
वो वैष्णव मन में प्रस्सन्ता ले के चला गया ...
और ब्याह का दिन भी कुछ समय में आ गया .....
पास के गांव में ही आपश्री को पधारनो हतो.....
हस्त मिलाप का समय हो रहा था पर आपश्री अब तक वहा नहीं पधारे...
सब आप की प्रतीक्षा कर रहे थे ....
अब तक आप क्यों नहीं पधारे ???
आप श्री को कोई कार्य आ गया ??
इसलिए आप श्री देर से पधारेंगे??...
पर ऐसा भी कोई समाचार नहीं था ??
और आप श्री समाचार पहोचाते भी कैसे क्योंकि उस वक्त फोन आदि की सुविधा भी नहीं थी ...
सब लोग कन्या के पिता को कहने लगे की अब मन से आपश्री को बिनती और दंडवत करके हस्त मिलाप की विधि कर लो और फिर आप श्री पधारे तो क्षमा मांग के हम दंडवत चरण स्पर्श कर लेंगे ।
पर वो लड़की का पिता नहीं मान रहे थे ....
विधि करने वाले ब्राह्मण ने भी कहा की मुहर्त निकल जायेगा ...
और फिर अपशुकन हो जायेगा ....
फिर भी वो वैष्णव एक ही बाबत कर रहे थे के बावा के बिना में हस्तमिलाप नहीं करवाऊंगा.......
थोड़ी देर भई और आप श्री वहा पधारे ...
और हस्त मिलाप की विधि सम्पन हुई ....
सब विधि कर के आप श्री विजय हुए ..
वो वैष्णव की बेटी का ब्याह भी बड़ी प्रस्सन्ता से पूर्ण हुआ ..।
दूसरे दिन वो कन्या का पिता फिर से आप श्री के वहा भेट करने के लिए आया।
तब उसे आप श्री का खवास मिला और पूछा की तुम्हारी बेटी का ब्याह अच्छे से हो गया ना????
तब वैष्णव ने कहा की
श्री की कृपा से हो गया और आपश्री पधारे फिर क्या कमी रहेगी।
तब वो खवास ने कहा की क्या कहा आपने ???? बावाश्री तो नहीं पधारे थे आप के यहाँ। आपश्री तो कल यहाँ ही थे क्योंकि आप के श्री अंग में ठीक नहीं था और यहाँ ही बिराज रहे थे और आप बोल रहे हो की बावा आप के वहा पधारे थे ....
वा वैष्णव ने खवास की पूरी बाबत सुनकर वाको पूछा की आप सही बोल रहे हो ना????
तब वो खवास ने कही की अरे भाई में क्यों जूठ बोलूंगा?? तुम यहाँ किसी को भी पूछ के खात्री कर लो ....
खात्री कर के वो आप श्री के सन्मुख आया और रोने लगा की मेरी वजह से आप श्री को बहुत श्रम हुआ
जे राज आप ने मुजपे बड़ी कृपा करी ।
तब आप श्री ने आज्ञा करी की तेरी अनन्यता देख के मुझसे रहा नहीं गया मै क्या करू ...
इसलिए में वहा पहोच गया।
ऐसो सामर्थ्य है
"वल्लभ कुल" में ....
इस बात से हमें ये सीख मिलती है की
वल्लभ कुल की आज्ञा में हमें सम्पूर्ण श्रद्धा होनी चाहिए और हमें इतना विश्वास होना चाहिए की भले मुहर्त बीत जाये पर आपश्री पधारे वही हमारा शुभ मुहर्त है
श्री वल्लभ कुल के चरणों में जब इतना दृढ़ विश्वास होगा तब जरूर हमें आपश्री के सामर्थ्य का दर्शन होगा ।
" कमी हम सब में है
वल्लभ कुल के सामर्थ्य में नहीं
यह प्रसंग श्री वल्लभ कुल के प्रतापी बालक का है,
पर इस में हम "वैष्णव" को भी कैसी अनन्यता रखनी चाहिए ये बात बताई गयी है ।

एक समय एक बालक को किसी वैष्णव ने आके बिनती करी के जे राज आप कृपा करके मेरी बेटी के ब्याह में पधारो
हमारा ऐसा मनोरथ है की
आप पधार के हस्त मिलाप कराओ।
तब आपने पधारने की हा कही .....
वो वैष्णव मन में प्रस्सन्ता ले के चला गया ...
और ब्याह का दिन भी कुछ समय में आ गया .....
पास के गांव में ही आपश्री को पधारनो हतो.....
हस्त मिलाप का समय हो रहा था पर आपश्री अब तक वहा नहीं पधारे...
सब आप की प्रतीक्षा कर रहे थे ....
अब तक आप क्यों नहीं पधारे ???
आप श्री को कोई कार्य आ गया ??
इसलिए आप श्री देर से पधारेंगे??...
पर ऐसा भी कोई समाचार नहीं था ??
और आप श्री समाचार पहोचाते भी कैसे क्योंकि उस वक्त फोन आदि की सुविधा भी नहीं थी ...
सब लोग कन्या के पिता को कहने लगे की अब मन से आपश्री को बिनती और दंडवत करके हस्त मिलाप की विधि कर लो और फिर आप श्री पधारे तो क्षमा मांग के हम दंडवत चरण स्पर्श कर लेंगे ।
पर वो लड़की का पिता नहीं मान रहे थे ....
विधि करने वाले ब्राह्मण ने भी कहा की मुहर्त निकल जायेगा ...
और फिर अपशुकन हो जायेगा ....
फिर भी वो वैष्णव एक ही बाबत कर रहे थे के बावा के बिना में हस्तमिलाप नहीं करवाऊंगा.......
थोड़ी देर भई और आप श्री वहा पधारे ...
और हस्त मिलाप की विधि सम्पन हुई ....
सब विधि कर के आप श्री विजय हुए ..
वो वैष्णव की बेटी का ब्याह भी बड़ी प्रस्सन्ता से पूर्ण हुआ ..।
दूसरे दिन वो कन्या का पिता फिर से आप श्री के वहा भेट करने के लिए आया।
तब उसे आप श्री का खवास मिला और पूछा की तुम्हारी बेटी का ब्याह अच्छे से हो गया ना????
तब वैष्णव ने कहा की
श्री की कृपा से हो गया और आपश्री पधारे फिर क्या कमी रहेगी।
तब वो खवास ने कहा की क्या कहा आपने ???? बावाश्री तो नहीं पधारे थे आप के यहाँ। आपश्री तो कल यहाँ ही थे क्योंकि आप के श्री अंग में ठीक नहीं था और यहाँ ही बिराज रहे थे और आप बोल रहे हो की बावा आप के वहा पधारे थे ....
वा वैष्णव ने खवास की पूरी बाबत सुनकर वाको पूछा की आप सही बोल रहे हो ना????
तब वो खवास ने कही की अरे भाई में क्यों जूठ बोलूंगा?? तुम यहाँ किसी को भी पूछ के खात्री कर लो ....
खात्री कर के वो आप श्री के सन्मुख आया और रोने लगा की मेरी वजह से आप श्री को बहुत श्रम हुआ
जे राज आप ने मुजपे बड़ी कृपा करी ।
तब आप श्री ने आज्ञा करी की तेरी अनन्यता देख के मुझसे रहा नहीं गया मै क्या करू ...
इसलिए में वहा पहोच गया।
ऐसो सामर्थ्य है
"वल्लभ कुल" में ....
इस बात से हमें ये सीख मिलती है की
वल्लभ कुल की आज्ञा में हमें सम्पूर्ण श्रद्धा होनी चाहिए और हमें इतना विश्वास होना चाहिए की भले मुहर्त बीत जाये पर आपश्री पधारे वही हमारा शुभ मुहर्त है
श्री वल्लभ कुल के चरणों में जब इतना दृढ़ विश्वास होगा तब जरूर हमें आपश्री के सामर्थ्य का दर्शन होगा ।
" कमी हम सब में है
वल्लभ कुल के सामर्थ्य में नहीं
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