होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, होली का महत्व, कथा और पूजा-विधि
Holi 2019: 21 मार्च को पूरे देश में होली (Holi) मनाई जाएगी. इससे पहले 20 मार्च को होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाएगा. इसे छोटी होली (Chhoti Holi) और होलिका दीपक (Holika Deepak) भी कहते हैं.

21 मार्च को पूरे देश में होली (Holi) मनाई जाएगी. इससे पहले 20 मार्च को होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाएगा. इसे छोटी होली (Chhoti Holi) और होलिका दीपक (Holika Deepak) भी कहते हैं. बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. पहले होली की घर में पूजा कर चौराहों पर होलिका को जलाया जाता है. फिर अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है. वहीं, मथुरा के बरसाना में हफ्तों पहले ही होली का पर्व शुरू हो जाता है. 15 मार्च को बरसाना में लड्डू होली खेली गई. इसके बाद लट्ठमार होली का आयोजन होगा.
होलिका दहन का मुहूर्त
शुभ मुहूर्त शुरू - रात 08:58 से
शुभ मुहूर्त खत्म - 11:34 तक
शुभ मुहूर्त शुरू - रात 08:58 से
शुभ मुहूर्त खत्म - 11:34 तक
होलिका पूजा की सामग्री
गोबर से बनी होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं, माला, रोली, फूल, कच्चा सूत, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, पांच या सात प्रकार के अनाज जैसे नए गेहूं और अन्य फसलों की बालियां, एक लोटा जल, बड़ी-फुलौरी, मीठे पकवान, मिठाइयां और फल.
होलिका दहन पूजा-विधि
मान्यताओं के अनुसार होलिका में आग लगाने से पहले विधिवत पूजन करने की परंपरा है. यहां जानिए होलिका दहन की पूरी पूजा-विधि:-
1. सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें.
2. अब अपने आस-पास पानी की बूंदे छिड़कें.
3. गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं.
4. थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक लोटा पानी रखें.
5. नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए प्रतिमाओं पर रोली, मौली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें.
6. अब सभी सामान लेकर होलिका दहन वाले स्थान पर ले जाएं.
7. अग्नि जलाने से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) में उठाएं और भगवान गणेश का स्मरण कर होलिका पर अक्षत अर्पण करें.
8. इसके बाद प्रहलाद का नाम लें और फूल चढ़ाएं.
9. भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए पांचों अनाज चढ़ाएं
10. अब दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और फूल चढ़ाएं.
11. कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें.
12. आखिर में गुलाल डालकर लोटे से जल चढ़ाएं.
मान्यताओं के अनुसार होलिका में आग लगाने से पहले विधिवत पूजन करने की परंपरा है. यहां जानिए होलिका दहन की पूरी पूजा-विधि:-
1. सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें.
2. अब अपने आस-पास पानी की बूंदे छिड़कें.
3. गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं.
4. थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक लोटा पानी रखें.
5. नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए प्रतिमाओं पर रोली, मौली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें.
6. अब सभी सामान लेकर होलिका दहन वाले स्थान पर ले जाएं.
7. अग्नि जलाने से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) में उठाएं और भगवान गणेश का स्मरण कर होलिका पर अक्षत अर्पण करें.
8. इसके बाद प्रहलाद का नाम लें और फूल चढ़ाएं.
9. भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए पांचों अनाज चढ़ाएं
10. अब दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और फूल चढ़ाएं.
11. कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें.
12. आखिर में गुलाल डालकर लोटे से जल चढ़ाएं.
होली का महत्व
दशहरा की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है. होली को लेकर हिंदू धर्म में कई कथाएं प्रचलित हैं और सभी में बुराई को खत्म करने के बाद जश्न मनाने के बारे में बताया गया है. होली से पहले होलिका दहन के दिन पवित्र अग्नि जलाई जाती जिसमें सभी तरह की बुराई, अंहकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है. परिवारजनों और दोस्तों को रंग लगाकर होली की शुभकामनाएं दी जाती हैं. साथ ही होता है नाच, गाना और स्वादिष्ट व्यंजन.
होली की प्रचलित कथाएं
होली से जुड़ी एक या दो नहीं बल्कि अनेको कथाएं प्रचलित हैं, जिसने आज भी कई लोग अंजान हैं. क्योंकि भारत में सबसे प्रसिद्ध राधा-कृष्ण की होली है, जो हर साल वृंदावन और बरसाने में बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है. लेकिन राधा रानी और कृष्णा जी की होली के अलावा भी इस पर्व से जुड़ी कई और कथाएं भी हैं.
मुगलों की 'ईद-ए-गुलाबी'
मुगलों के काल में भी होली का त्योहार मनाया जाता था. मुगल शासक शाहजहां होली को ईद-ए-गुलाबी (Eid-e-Gulabi) या फिर आब-ए-पाशी (Aab-e-Pashi) नाम से संबोधित किया करते थे. आब-ए-पाशी का मतलब है रंग-बिरंगे फूलों की वर्षा. इस काल में फूलों से होली खेली जाती थी.
शिव-पार्वती की होली
पौराणिक कथा के अनुसार हिमालय पुत्री मां पार्वती ने शिव जी तपस्या भंग करने की योजना बनाई. इसके लिए पार्वती जी ने कामदेव की सहायता ली. कामदेव ने प्रेम बाण चलाकर भगवान शिव की तपस्या को भंग कर दिया. लेकिन इस बात से शिव जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी. उनकी इस क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया. लेकिन प्रेम बाण ने अपना असर दिखाया और शिव जी को मां पार्वती को देखते ही उनसे प्यार हुआ और उन्हें अपनी पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया. होली की आग को प्रेम का प्रतीम मानकर यह पर्व मनाया जाने लगा.
हिरणकश्यप की कहानी
एक और प्रचलित कथा के अनुसार हिरणकश्यप अपने विष्णु भक्त बेटे प्रहलाद की हत्या करना चाहता था. इसके लिए वो अपनी बहन होलिका की भी सहायता लेते हैं. दरअसल, अत्याचारी हिरणकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान पा लिया था. वरदान में उसने मांगा था कि कोई जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य, रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर मार न सके. इस वरदान से घमंड में आकर वह चाहता था कि हर कोई उसे ही पूजे. लेकिन उसका बेटा भगवान विष्णु का परम भक्त था. उसने प्रहलाद को आदेश दिया कि वह किसी और की स्तुति ना करे, लेकिन प्रहलाद नहीं माना. प्रहलाद के ना मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का प्रण लिया. प्रहलाद को मारने के लिए उसने अनेक उपाय किए लेकिन वह हमेशा बचता रहा. उसके अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त बहन होलिका के संग प्रहलाद को आग में जलाना चाहा, लेकिन इस बार भी बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और प्रहलाद बच गया. लेकिन उसकी बुआ होलिका जलकर भस्म हो गई. तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा.
राधा-कृष्ण की होली
हिंदु धर्म में होली की सबसे प्रचलित कथा भगवान कृष्ण और राधा रानी की है. इस कथा में राक्षसी पूतना एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर बालक कृष्ण के पास जाती है और उन्हें जहरीला दूध पिलाने की कोशिश करती हैं. लेकिन कृष्ण उसको मारने में सफल रहते हैं. पूतना का देह गायब हो जाता है और बाल कृष्ण को जीवित देख सभी गांववालों में खुशी की लहर दौड़ पड़ती है फिर सब मिलकर पूतना का पुतला बनाकर जलाते हैं. इस बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में होली मनाई जाती है.
Source : NDTV India
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