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Monday, September 10, 2018

Jain Paryushan Parv | जैन पर्युषण पर्व

Jain Paryushan Parv | जैन पर्युषण पर्व
         पर्यूषण पर्व भगवान महावीर के अनुयायियों तथा जैन धर्मावलंबियों द्वारा भाद्रपद मास में मनाया जाता है।आठ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मनुष्य, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग जैसी साधना तप-जप के साथ करके मानव जीवन को सार्थक बनाता है। पर्यूषण पर्व को मनाने का मुख्य उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। पर्यावरण का शुद्धिकरण इसके लिए अनिवार्य बताया गया है।
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पर्व समय
जैन धर्म में मुख्यतः दो सम्प्रदाय हैं- श्वेताम्बर संप्रदाय और दिगंबर संप्रदाय। श्वेताम्बर संप्रदाय को मानने वाले लोग पर्यूषण पर्व को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाते हैं,
जबकि दिगंबर संप्रदाय के लोग इस महापर्व को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक मनाते हैं। पर्यूषण पर्व में अनुयायी जैन तीर्थंकरों की पूजा, सेवा और स्मरण करते हैं।
पर्व में शामिल होने वाले लोग आठ दिनों के लिए उपवास रखने का प्रण करते हैं, इसे 'अटाई' कहा जाता है।
आठ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में एक दिन स्वप्न दर्शन होता है, जिसमें उत्सव के साथ 'त्रिशाला देवी' की पूजा तथा आराधना आदि भी की जाती है।


उद्देश्य
क्षमा-याचना के इस महापर्व का मुख्य उद्धेश्य तप और बल को विकसित कर सारी सांसारिक प्रवृत्तियों को अहिंसा से भर देना होता है।
पर्यूषण पर्व के इस शुभ अवसर पर जैन संत और विद्वान् समाज को पर्यूषण पर्व की दशधर्मी शिक्षा को अनुसरण करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं, क्योंकि महापर्व की इस शिक्षाओं के अंतर्गत अनुयायी उत्तम मानवीय धर्म को हृदय की मधुरता और स्वभाव की विनम्रता के माध्यम से अनुभव करता है और उसे स्वीकार करता है।
इस पर्व के मौके पर जिनालयों और जैन मंदिरों में सुबह प्रवचनों और शाम के समय विविध धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस समस्त कार्यक्रम में काफ़ी संख्यां में जैन धर्मावलम्बी उपस्थित होते हैं।


शिक्षा
मानव की सोई हुई अन्त:चेतना को जागृत करने, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार, सामाजिक सद्भावना एवं सर्व-धर्म समभाव के कथन को बल प्रदान करने के लिए पर्यूषण पर्व मनाया जाता है।
यह पर्व धर्म के साथ राष्ट्रीय एकता तथा मानव धर्म का पाठ पढ़ाता है।
यह पर्व सिखाता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की प्राप्ति में ज्ञान व भक्ति के साथ सद्भावना का होना अनिवार्य है। भगवान भक्त की भक्ति को देखता है, उसकी अमीरी-ग़रीबी या सुख-समृद्धि को नहीं।
जैन सम्प्रदाय का यह पर्व हर दृष्टीकोण से गर्व करने लायक़ है, क्योंकि इस दौरान गुरु भगवंतो के मुखारविद से अमृतवाणी का श्रवण होता है, जो हमारे जीवन में ज्ञान व धर्म के अंकुर को परिपक्व करता है।


વાંક મારો હતો કે તારો,
માત્ર "આજ" આપણને મળી છે, 
કાલની કોઈ ને ખબર કયાં,

નમીએ, ખમીએ,    
અને સુખ-દુઃખમાં
એક બીજાને કહીએ
"તમે ફિકર ના કરો અમે છઈએ,"

આજે  એક નવો જ સંકલ્પ લઈએ,
" એક  બીજાની અદેખાઈ, સ્પર્ધા તજીએ,

માફી માંગવાનો હક્ક મારો છે 
અને માફ કરવાનો અધિકાર તમારો છે

આશા છે આપ મને માફ કરશો
પર્વ પર્યુષણ ની પહેલા, ખરાં અંતર ભાવ થી સર્વે ને..

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Wednesday, September 5, 2018

5.9.18 | Teacher's Day | रोचक जानकारी

5.9.18 | Teacher's Day
रोचक जानकारी

5.9.18 | Teacher's Day रोचक जानकारी भारत में शिक्षकों के योगदान को सम्मान देने के लिये हर वर्ष 05 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था इसलिये अध्यापन पेशे के प्रति उनके प्यार और लगाव के कारण उनके जन्मदिन पर पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
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शिक्षक दिवस गुरु की महत्ता बताने वाला प्रमुख दिवस है। भारत में 'शिक्षक दिवस' प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को मनाया जाता है। शिक्षक का समाज में आदरणीय व सम्माननीय स्थान होता है। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस और उनकी स्मृति के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला 'शिक्षक दिवस' एक पर्व की तरह है, जो शिक्षक समुदाय के मान-सम्मान को बढ़ाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन को 'गुरु दिवस' के रूप में स्वीकार किया गया है। विश्व के विभिन्न देश अलग-अलग तारीख़ों में 'शिक्षक दिवस' को मानते हैं। बहुत सारे कवियों, गद्यकारों ने कितने ही पन्ने गुरु की महिमा में रंग डाले हैं।

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय

बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।


कबीरदास द्वारा लिखी गई उक्त पंक्तियाँ जीवन में गुरु के महत्त्व को वर्णित करने के लिए काफ़ी हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृत्तांत ग्रंथों में भी मिलता है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन ख़ूबसूरत दुनिया में लाते हैं। उनका ऋण हम किसी भी रूप में उतार नहीं सकते, लेकिन जिस समाज में रहना है, उसके योग्य हमें केवल शिक्षक ही बनाते हैं। यद्यपि परिवार को बच्चे के प्रारंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है, लेकिन जीने का असली सलीका उसे शिक्षक ही सिखाता है। समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षकों का महत्त्व यहीं समाप्त नहीं होता, क्योंकि वह ना सिर्फ़ विद्यार्थी को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि उसके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है।



शिक्षक का मान-सम्मान

गुरु, शिक्षक, आचार्य, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है। इन्हीं शिक्षकों को मान-सम्मान, आदर तथा धन्यवाद देने के लिए एक दिन निर्धारित है, जो की 5 सितंबर को 'शिक्षक दिवस' के रूप में जाना जाता है। सिर्फ़ धन को देकर ही शिक्षा हासिल नहीं होती, बल्कि अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और विश्वास, ज्ञानार्जन में बहुत सहायक होता है। 'शिक्षक दिवस' कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है, लेकिन क्या हम इसके महत्त्व को समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या ‍कोई भी उपहार नहीं है और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है। यदि शिक्षक दिवस का सही महत्त्व समझना है तो सर्वप्रथम हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि आप एक छात्र हैं और ‍उम्र में अपने शिक्षक से काफ़ी छोटे है। और फिर हमारे संस्कार भी तो यही सिखाते है कि हमें अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर अपने क्रोध, ईर्ष्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं तो निश्‍चित ही हमारा व्यवहार हमें बहुत ऊँचाइयों तक ले जाएगा और तभी हमारा 'शिक्षक दिवस' मनाने का महत्त्व भी सार्थक होगा।


प्रेरणा स्रोत

संत कबीर के शब्दों से
भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। भारतीय बच्चे प्राचीन काल से ही आचार्य देवो भवः का बोध-वाक्य सुनकर ही बड़े होते हैं।
माता-पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है, परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है। कच्चे घड़े की भांति स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जिस रूप में ढालो, वे ढल जाते हैं। वे स्कूल में जो सीखते हैं या जैसा उन्हें सिखाया जाता है, वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी मानसिकता भी कुछ वैसी ही बन जाती है, जैसा वह अपने आस-पास होता देखते हैं। सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है, जो गुरु द्वारा प्रदान की जाती है। गुरु का संबंध केवल शिक्षा से ही नहीं होता, बल्कि वह तो हर मोड़ पर अपने छात्र का हाथ थामने के लिए तैयार रहता है। उसे सही सुझाव देता है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। 

माली रूपी शिक्षक

शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता हैशिक्षक के लिए सभी छात्र समान होते हैं और वह सभी का कल्याण चाहता है। शिक्षक ही वह धुरी होता है, जो विद्यार्थी को सही-गलत व अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हुए बच्चों की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार करता है। वह प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करता है। किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है। एक ऐसी परंपरा हमारी संस्कृति में थी, इसलिए कहा गया है कि- 

"गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।"

कई ऋषि-मुनियों ने अपने गुरुओं से तपस्या की शिक्षा को पाकर जीवन को सार्थक बनाया। एकलव्य ने द्रोणाचार्य को अपना मानस गुरु मानकर उनकी प्रतिमा को अपने सक्षम रख धनुर्विद्या सीखी। यह उदाहरण प्रत्येक शिष्य के लिए प्रेरणादायक है।


गुरु-शिष्य परंपरा

गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है,
जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। लेकिन वर्तमान समय में कई ऐसे लोग भी हैं, जो अपने अनैतिक कारनामों और लालची स्वभाव के कारण इस परंपरा पर गहरा आघात कर रहे हैं। 'शिक्षा' जिसे अब एक व्यापार समझकर बेचा जाने लगा है, किसी भी बच्चे का एक मौलिक अधिकार है, लेकिन अपने लालच को शांत करने के लिए आज तमाम शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। इतना ही नहीं वर्तमान हालात तो इससे भी बदतर हो गए हैं, क्योंकि शिक्षा की आड़ में कई शिक्षक अपने छात्रों का शारीरिक और मानसिक शोषण करने को अपना अधिकार ही मान बैठे हैं। किंतु कुछ ऐसे गुरु भी हैं, जिन्होंने हमेशा समाज के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। प्राय: सख्त और अक्खड़ स्वभाव वाले यह शिक्षक अंदर से बेहद कोमल और उदार होते हैं।
हो सकता है कि किसी छात्र के जीवन में कभी ना कभी एक ऐसे गुरु या शिक्षक का आगमन हुआ हो, जिसने उसके जीवन की दिशा बदल दी या फिर जीवन जीने का सही ढंग सिखाया हो..


रोचक जानकारी

भारत में शिक्षकों के योगदान को सम्मान देने के लिये हर वर्ष 05 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था इसलिये अध्यापन पेशे के प्रति उनके प्यार और लगाव के कारण उनके जन्मदिन पर पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वहीं 'अन्तरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस' का आयोजन 5 अक्टूबर को होता है। रोचक तथ्य यह भी है कि शिक्षक दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है, लेकिन सबने इसके लिए एक अलग दिन निर्धारित किया है। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता है तो कहीं-कहीं यह कामकाजी दिन ही रहता है। 

• यूनेस्को ने 5 अक्टूबर को 'अन्तरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस' घोषित किया था।
साल 1994 से ही इसे मनाया जा रहा है।
शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से इसकी शुरुआत की गई थी।


--• चीन में 1931 में 'नेशनल सेंट्रल यूनिवर्सिटी' में शिक्षक दिवस की शुरूआत की गई थी।

चीन सरकार ने 1932 में इसे स्वीकृति दी।
बाद में 1939 में कन्फ़्यूशियस के जन्मदिवस, 27 अगस्त को शिक्षक दिवस घोषित किया गया, लेकिन 1951 में इस घोषणा को वापस ले लिया गया।
साल 1985 में 10 सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया।
अब चीन के ज्यादातर लोग फिर से चाहते हैं कि कन्फ्यूशियस का जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस हो।

• रूस में 1965 से 1994 तक अक्टूबर महीने के पहले रविवार के दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता रहा।साल 1994 से विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को ही मनाया जाने लगा।


• अमेरिका में मई के पहले पूर्ण सप्ताह के मंगलवार को शिक्षक दिवस घोषित किया गया है और वहाँ सप्ताह भर इसके आयोजन होते हैं।



• थाइलैंड में हर साल 16 जनवरी को 'राष्ट्रीय शिक्षक दिवस' मनाया जाता है। यहाँ 21 नवंबर, 1956 को एक प्रस्ताव लाकर शिक्षक दिवस को स्वीकृति दी गई थी।

पहला शिक्षक दिवस 1957 में मनाया गया था। इस दिन यहाँ स्कूलों में अवकाश रहता है।


• ईरान में वहाँ के प्रोफेसर अयातुल्लाह मोर्तेजा मोतेहारी की हत्या के बाद उनकी याद में 2 मई को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। मोतेहारी की 2 मई, 1980 को हत्या कर दी गई थी।



• तुर्की में 24 नवंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

वहाँ के पहले राष्ट्रपति कमाल अतातुर्क ने यह घोषणा की थी।


• मलेशिया में शिक्षक दिवस 16 मई को मनाया जाता है, वहाँ इस ख़ास दिन को 'हरि गुरु' कहते हैं।



आदर्शों की मिसाल बनकर

बाल जीवन संवारता शिक्षक,


सदाबहार फूल-सा खिलकर

महकता और महकाता शिक्षक,


नित नए प्रेरक आयाम लेकर

हर पल भव्य बनाता शिक्षक,


संचित ज्ञान का धन हमें देकर

खुशियां खूब मनाता शिक्षक,


पाप व लालच से डरने की

धर्मीय सीख सिखाता शिक्षक,


देश के लिए मर मिटने की

बलिदानी राह दिखाता शिक्षक,


प्रकाशपुंज का आधार बनकर

कर्तव्य अपना निभाता शिक्षक,


प्रेम सरिता की बनकर धारा

नैया पार लगाता शिक्षक।


1 शिक्षक किताबी ज्ञान देता हैं,

1 आपको विस्तार समझाता हैं
1 स्वयं कार्य करके दिखाता हैं और
1 आपको रास्ता दिखाकर आपको उस पर चलने के लिए छोड़ देता हैं ताकि
आप अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बना सके
यह अंतिम गुण वाला शिक्षक सदैव आपके भीतर प्रेरणा के रूप में रहता हैं
जो हर परिस्थिती में आपको संभालता हैं आपको प्रोत्साहित करता हैं.


समस्त शिक्षकों को हम निम्न शब्दों से नमन करते हैं



ज्ञानी के मुख से झरे, सदा ज्ञान की बात।

हर एक पंखुड़ी फूल, खुशबू की सौगात।।


धन्यवाद !
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Saturday, September 1, 2018

Aryam Bharatam Shitala Satam Increase Vitamin B12 | આર્યમ ભારતમ : શિતળા સાતમ એટલે વિટામિન B12 નિ ઉણપ દુર કરવાનો પર્વ

:: આર્યમ ભારતમ ::
શિતળા સાતમ એટલે વિટામિન B12 નિ ઉણપ દુર કરવાનો પર્વ 
:: Aryam Bharatam ::
Shitala Satam Increase Vitamin B12
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                        આપણે સૌ જાણીએ છિએ કે આજકાલ સમાજમાં વિટામિન B12 નિ ઉણપના કિસ્સાઓ વધી રહ્યાં છે. લોકોએ વિટામિન B12 માટે ઇન્જેક્શન લેવા પડે છે. આવિ અનેક બિમારીઓ માટે આર્યમ ભારતમ ટિમ અધ્યયન કરે છે અને સમાજમાં જાગ્રુતિ ફેલાવવાનું કામ કરે છે. આપણું શરીર નિરોગી રહે તેને ધ્યાનમાં રાખીને આપણાં ઋષીમુનિઓએ વિવિધ તહેવારોની રચના કરી હતી. આપણે જાણીએ છીએ કે વિટામિન B12 ફક્ત બિનશાકાહારી ખોરાકમાં જ છે.  આપણા પુર્વજો તો શુદ્ધ શાકાહારી હતા. તો તેઓ કેવી રીતે જીવતા હશે. ચાલો સમજીએ..... 
                            આપણે સૌ રાંધણ છઠ્ઠની વાર્તા જાણીએ છીએ કે આ દિવસે જે ખોરાક રંધાય છે તેને બીજા દિવસે શિતળા સાતમના રોજ ઠંડા ખવાય છે. જે ખોરાકમાં એવા બેક્ટેરીયા બનાવે છે જે આપણા શરીરમાં જઇને એવુ B12 બનાવે છે જે ૨૫ વર્ષ સુધી B12ની ઉણપ નથી  થવા દેતું. પરંતુ જો ખોરાકને આયોડિનવાળા મિઠાથી રાન્ધેલો ખોરાક ખાય તો શરીરમા આયોડીનની અતિરીક્ત માત્રા જવાથી B12ના બેક્ટેરીયાને નષ્ટ કરી નાખે છે અને વિટામિન B12ની ઉણપ રહી જાય છે. તેથી આ દિવસો દરમ્યાન અને શક્ય હોય તો આજીવન સિંધાલુણ (સિંધવ મીઠુ) જ રસોઇ માટે ઉપયોગ કરવું જે આપણા શરીર માટે ખુબ જ ગુણકારી છે અને આ દિવસે કોઇપણ ગરમ ખોરાક ખાવા નહિ. ચા પણ પીવી નહિ. ભાભા રીસર્ચ સેન્ટરનાં વૈજ્ઞાનિક શ્રી આર. એન. વર્માજીનું સંશોધન છે કે જો આ રીતે શિતળા સાતમનો તહેવાર ઉજવવામાં આવે તો વિટામિન B12 ની સમસ્યા થતી જ નથી.
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